Gunjan Kamal

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अधजल गगरी छलकत जाए

सार्थक और मुक्ता दोनों को ही पिछले कुछ दिनों से यें लग रहा था कि उनका बेटा यश उनकी हर बात को ना मानने का कोई ना कोई तर्क उनके समक्ष रख ही रहा है।


दोनों ने इस संबंध में अपने बेटे यश को समझाने की भी कोशिश की लेकिन अब तो वह उनसे सीधे मुंह बात भी नहीं करता था, जो भी बात उसे कहनी होती थी वह कह कर चला जाता था। सीधे शब्दों में कहें तो वह अपने बड़ों से मुंह लगाने तक  लग गया था।


आज तो हद ही हो गई थी जब उसकी माॅं ने उसकी पढ़ाई को लेकर उससे प्रश्न किया तो वह उल्टा ही जवाब देने लगा कि यह मेरी जिंदगी है मैं जो भी करूं आपको इस सब से कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए।


हर मां-बाप की तरह सार्थक और मुक्ता इस बात को भलीभांति जानते थे कि बच्चों में एक उम्र ऐसी होती है जब वह बगावत पर उतर आते हैं और उनका बेटा भी इसी उम्र से गुजर रहा था इस बात का एहसास उन्हें अपने बेटे की हरकतें और उसकी बातों को सुनते एवं देखते हुए हो ही रहा था।


सार्थक और मुक्ता को अपने बेटे से इस बात की उम्मीद नहीं थी जो उसने आज कही थी। "माना कि उसके बेटे का उसके अपने  जीवन पर  हक है लेकिन क्या उसके जीवन पर उसके माता-पिता का  बिल्कुल भी अधिकार नहीं है?"  इस बात को सोचते हुए दोनों की ही ऑंखें नम हो रही थी तभी मुक्ता को अपने कंधे पर किसी का स्पर्श महसूस हुआ, उसने पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि उसकी छोटी ननद रजनी मुस्कुराते हुए उसकी तरफ  ही देख रही थी।


अपनी भाभी की नम ऑंखों को देखकर रजनी को इस बात का अंदाजा तो लग ही गया था कि ऐसी कोई ना कोई बात तो जरूर है जिसके कारण उसके भाई - भाभी परेशान है और उनकी ऐसी हालत दिख रही है।


रजनी ने कुछ ही देर में अपने भैया - भाभी से पता लगा ही  लिया कि उनकी परेशानी की वजह क्या है?


स्कूल से आते ही यश जैसे ही अपनी दादी के कमरे की तरफ बढ़ा, दादी की आवाज में आती खनक ने उसे कमरे के बाहर ही ये एहसास दिला दिया कि इस घर में कोई तो ऐसा आया है जिसके कारण दादी बहुत खुश है।


"मेरे सिवा इस घर में तो ऐसा कोई नहीं जो दादी को  खुश रखने की कोशिश करे फिर ऐसा कौन है दादी के साथ जिसके कारण दादी की बातों में खुशी झलक रही है?" यें सोचते हुए यश जैसे ही दादी के कमरे में पहुंचा, सामने अपनी रजनी बुआ को देखकर वह दौड़कर अपनी बुआ के  गले लग गया।


यश और उसकी रजनी बुआ दोनों ही एक - दूसरे के बेहद करीब थे, ऐसी कोई बात नहीं थी जो दोनों से छुपी हुई हो।


"बुआ! आप आई और आपने मुझे यह तक नहीं बताया कि आप आने वाली है?  मेरी सुबह भी आप से बात हुई थी लेकिन आपने मुझे यह जानने तक नही दिया कि आप आने वाली हो।"  शिकायत भरे लहजे में यश ने अपनी बुआ से कहा।


" अगर तुम्हें बता देती कि मैं आने वाली हूॅं तो तुम्हारे चेहरे पर मेरे आने से जो खुशी मैं कुछ देर पहले देख रही थी उसे तो नही देख पाती ना।" रजनी ने यश के बालों में स्नेह से हाथ फेरते हुए कहा।


"यह बात तो आपने बिल्कुल सही कही बुआ। माना कि हम रोज फोन पर  बात कर ही रहे थे लेकिन आप से मिलने का मेरा बहुत मन कर रहा था। मैं फोन पर आपसे ये  बात नहीं कह पाया लेकिन मुझे आपने जो करने के लिए कहा था, वे करते हुए बहुत बुरा लग रहा है लेकिन साथ ही  यह भी लग रहा है कि वें दोनों जो कर रहे हैं क्या वह सही है?"  यश ने कहा।


" अधजल गगरी छलकत जाए, ये मुहावरा तो तुमने सुना ही होगा यश! इस मुहावरे का अर्थ ये है कि अज्ञानी व्यक्ति ही अपने ज्ञान की चर्चा हर जगह करते रहते है। यहां पर ऊंची शिक्षा प्राप्त करना ही ज्ञान नही कहलाता। ज्ञान तो वह होता है जो हमें समाज में उठने - बैठने, अपने बड़े और छोटे से बोलने का लहजा सिखाता है और जो यें ज्ञान सीख गया  मेरी समझ में तो उससे बड़ा ज्ञानी कोई और है ही नही। हमारे आस - पास बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो उचित शिक्षा प्राप्त करके यह समझ लेते हैं कि हमने बहुत ज्ञान प्राप्त कर लिया है, ऐसे में जब वें दूसरों के साथ अज्ञानी जैसा व्यवहार तब  करते हैं जब वें अपनी शिक्षा का हवाला देकर अपने पूर्ण ज्ञानी होने का दिखावा करते है। तुम्हारे मम्मी - पापा भी तुम्हारी दादी के साथ ऐसा ही करते है। मैंने तुम्हें उनके साथ उनके जैसा व्यवहार करने के लिए इसलिए कहा था क्योंकि उन्हें भी अपनी गलती का यें एहसास हो जाए  कि वें अपने बड़ों के साथ क्या कर रहे हैं?" रजनी ने यश को समझाते हुए कहा।


"यह बात तो बिल्कुल सही है बुआ कि मैं जो अधजल गगरी छलकत जाए  वाली हरकतें पिछले कुछ दिनों से कर रहा  हूॅं सिर्फ इसलिए कि मेरे मम्मी - पापा भी दादी को इस बात का ताना देते हुए किसी बात को नकारे ना कि  वें दोनों उनसे अधिक पढ़े - लिखे हैं और वें  अधिक ज्ञानी है क्योंकि व्यवहार और अनुभव का ज्ञान, मैंने पढ़ा है कि सबसे बड़ा होता है।" यश ने रजनी की तरफ देखते हुए कहा।


"मेरा भतीजा तो ज्ञानियों जैसी बातें करने लगा है, लगता है इसे पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो चुका है।" हंसते हुए रजनी ने यश की तरफ देखकर कहा।


"मैं ज्ञानी हूॅं या नहीं मैं इस बात को नहीं जानता, मैं सिर्फ इतना करना चाहता हूॅं कि मेरे मम्मी- पापा को अपनी गलती का एहसास हो जाए और मुझे उनके सामने अधजल गगरी छलकत जाए वाले मुहावरे जैसी हरकतें ना करनी पड़े।" यश ने दादी की तरफ नम ऑंखों से देखते हुए कहा।


कमरे के बाहर हाथ में चाय - नाश्ता लिए खड़ी यश की मम्मी अपनी ननद और बेटे के बीच हो रही बातें सुनकर आश्चर्य में तो थी लेकिन यें भी सोच रही थी कि दोनों बोल तो सही रहे हैं।


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                                            धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻


गुॅंजन कमल 💗💞💗


# मुहावरों की दुनिया प्रतियोगिता 


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5 Comments

शानदार

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अदिति झा

17-Feb-2023 10:51 AM

Wah bahut khoob

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